नज़राना इश्क़ का (भाग : 15)
रोज की तरह आज भी निमय विक्रम के साथ अपने क्लास में जा कर अपनी सीट पर बैठ गया, आज शिक्षा के ना आने की वजह से फरी अपनी सीट पर बैठी हुई थी, जाह्नवी अपने ही ताने बाने बनाने में लगी हुई थी। निमय अपनी उल्टी सीधी हरकतों से जाह्नवी को चिढ़ाने में लगा हुआ था मगर अंदर ही अंदर वह डरा और रोमांच से भरा हुआ था, उसके रोम रोम में सिहरन हो रही थी। जाह्नवी निमय की हर हरकत का जवाब उल्टा सीधा मुँह बनाकर तो कभी इशारों से पीटने की धमकी देकर उसे घूर घूरकर देख रही थी।
फरी अपनी सीट पर बैठी हुई ख्यालों में डूबी हुई थी, वह भी काफी अजीब सा महसूस कर रही थी, निमय के स्पर्श को याद कर उसकी नस नस में रोमांच भर जाता, तभी उसे याद आया कि उसे तो निमय को थैंक यू नहीं बोलना तक याद नहीं रहा, वह अपने स्थान से उठकर निमय के पास जाकर थैंक यू बोलना चाहा। निमय फरी को अपनी ओर आते देख बेहद खुश हुआ, इससे पहले फरी अपना मुँह खोलती निमय ने उसे बैठने का इशारा किया।
"हे थैंक यू! आप ना होते तो आज…!" फरी ने सिर झुकाए हुए आभार व्यक्त किया।
"कुछ नहीं होता, कन्हैया जब कुछ करता है तो किसी न किसी वजह से करता है। फिर मैं कौन होता हूँ बचाने वाला, सबको मारने बचाने वाला तो वही है।" निमय ने मुस्कुराते हुए कहा।
"बड़े ज्ञानी हो आप तो…!" निमय की बात सुनकर फरी मुस्कुराई।
"नहीं..! बस थोड़ा मोड़ा आता है ना! छोटी छोटी बातों के लिए कौन थैंक यू सुने..!" निमय मुस्कुराया। इस वक़्त उसका सारा ध्यान फरी के चेहरे पर था, उसकी आँखे, फरी की आँखों से हट ही नहीं पा रही थी, वह उन आँखों में इतना डूब गया कि उसे इतना भी याद न रहा कि वो कौन है कहाँ है.. अचानक उसके साथ फरी के चेहरे के तरफ बढ़े, निमय का खुद पर कोई नियंत्रण नहीं था, एक जोरदार आवाज ने उसकी तंद्रा भंग की।
"तुम्हें क्या लगता है? कल मेरे भाई ने तुम्हें अपने पास बैठने दिया तो क्या रोज रोज यहीं बैठोगी? अपनी सीट पर जाओ…!" जाह्नवी गुस्से से फरी पर बरस रही थी। फरी समझने की कोशिश कर रही थी कि ये इतना क्यों बरसने लगी, जाह्नवी के चिल्लाने की आवाज ने निमय को धरातल पर ला पटका, उसने देखा जाह्नवी फरी पर बरस रही थी।
"क्या हुआ जानी? इतना गुस्सा क्यों हो?" निमय ने बड़े प्यार से पूछा।
"ये बात तो इन मोहतरमा से पूछो! कल इनके भाषण से इम्प्रेस होकर तूने इन्हें अपने पास बैठने क्या दिया, इनको तेरे ऊपर हक़ जमाने का हो गया!" जाह्नवी चिल्लाते हुए बोली, सभी हैरानी से उसकी ओर देख रहे थे।
"सॉरी जाह्नवी जी! आप गलत समझ रही हैं ऐसा कुछ नहीं…!" फरी ने जाह्नवी को समझाने की कोशिश की मगर उसे अपनी बात पूरी करने तक का अवसर नहीं मिला।
"हाँ और नहीं तो क्या! गलत ही तो समझती हूँ मैं..! मुझे लगा था कि सब अमीरजादे एक जैसे नहीं होते, उस दिन जब तुमने उतने प्यार से बात की तो लगा कि नहीं ये अलग है लेकिन फिर समझ आया तुम्हें तो मेरा मजाक उड़ाना था सो उड़वा लिया। मैंने सोचा अब तो तसल्ली मिल गयी होगी मगर नहीं, जो दौलत में डूबा हुआ हो, जिसकी नस नस में दौलत का नशा भरा हो उसे भला इतने में संतुष्टि कैसे मिलेगी? तो देवी जी अपनी करोड़ो की कार छोड़कर बस से आने लगी ताकि मेरे भाई को मुझसे जुदा कर सके..!" जाह्नवी जोर जोर से चीखते हुए बोली, उसकी आँखे गुस्से से लाल हो चुकी थी।
"नहीं… ऐसा कुछ नहीं है..!" फरी ने चीखने की कोशिश की मगर उसकी आवाज गले से बाहर न निकल सकी, उसके दिल की धड़कन बढ़ने लगी, आँखों से आंसुओ की धार बह निकली। उसको अपनी सांसे अटकती हुई महसूस हुई, उसने उठने की कोशिश की मगर उसे ऐसा महसूस हो रहा था मानो शरीर में जान ही न हो। अब तक सभी उन तीनों को घेर चुके थे, विक्रम उनके बीच से निमय के पास आने की कोअहिश कर रहा था, निमय आँखे फाड़े जाह्नवी को देख रहा था, उसे बिल्कुल समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या बोले।
"देखो मिस फरी! तुम्हारे पापा के पास चाहे इतनी दौलत क्यों न हो कि ये पूरी दुनिया खरीदकर तुम्हारें कदमों में रख दे मगर मेरे और मेरे बीच आने की गलती मत करना, दुनिया की कोई दौलत हम दोनों ऊ जुदा नहीं कर सकती है।" जाह्नवी ने गुस्से से चेतावनी के लहजे में कहना जारी रखा।
"प्लीज…!" फरी अपने आँसू पोछते हुए उठने की कोशिश की मगर लड़खड़ाकर गिर पड़ी, आज उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे उससे सबकुछ छीना जा रहा हो, उसको दुनिया की सबसे बड़ी सजा दी जा रही हो जबकि उसका कोई गुनाह भी न था। फरी ने दुबारा कोशिश किया मगर वह उठ न सकी, किसी भी लड़के या लड़की ने उसको सहारा न दिया, निमय अब भी आँखे फाड़े जाह्नवी को देख रहा था जैसे कि क्या हो गया हो! किसी तरह फरी उठते हुए अपनी सीट की ओर बढ़ी, सन्तुलन खराब होने के कारण उसका बायां पैर मुड़ गया आज कटे वृक्ष की भांति गिरने लगी तभी उसे किसी ने पकड़ लिया। यह विक्रम था जो अब तक निमय के पास आ चुका था, उसे जाह्नवी का गुस्सा होना अच्छा नहीं लग रहा था, उसने फरी को उसके सीट पर बिठाया और बॉटल खोलकर पानी पीने को दिया मगर फरी ने पानी पीने से इनकार कर दिया।
"बड़े लोग बड़े नखरे… ऐसे ही उस शिक्षा को मेरा भाई चाहिए था, मुझसे अलग करने की कोशिश कर रही थी वो बिचारी..! मगर ये अमीरजादे भूल जाते हैं कि दौलत और प्यार का कोई आपसी नाता नहीं है। अपनी दौलत के अकड़ में जीने वाले लोग भावनाओं की कीमत क्या जाने, जो खरीदने चले आते हैं!" जाह्नवी अब भी चुप नहीं हुई थी। "मैं एक बार को अपनी बेइज्जती बर्दाश्त कर सकती हूँ मगर कोई अपनी अमीरी के नशे में डूबकर मेरे भाई पर डोरे डाले, मुझसे अलग करने की कोशिश करे यह बिल्कुल बर्दाश्त नहीं होगा। इस बार तो बस बोला भर है अगली बार अगर किसी ने ऐसा कुछ करने का सोचा भी तो उसका एक हाथ तोड़कर दूसरे हाथ में थमा दूंगी...।" जाह्नवी गुस्से से चिल्लाते हुए बोली। "तुम सब यहां क्या देख रहे हो? जाओ बैठो अपनी अपनी सीट पर..!" जाह्नवी ने आदेशात्मक लहजे में कहा, उसके लहजे में गुस्से का पुट था। सभी उसके रौद्र रूप को देखकर हैरान थे, जाह्नवी वैसे तो शांत रहती थी मगर जब उसे गुस्सा आता था तो सामने वाले कि ऐसी तैसी कर देती थी इसी वजह से पूरी क्लास उससे दूर दूर रहती थी।
"ये क्या है जानी? ये शिक्षा से अलग है, उसकी तरह नहीं….!" निमय रुंधे गले से बोला।
"भाई यही तो प्रॉब्लम है तेरी! तुझे मेरे अलावा सारी लडकिया इन्नोसेंट और मासूम नजर आती हैं, यही तो इनका मास्टरस्ट्रोक होता है, इनका सबसे बड़ा हथियार…! मासूम बनकर दूसरों की जिंदगी जला देना। अरे ये अमीर लोग भावनाओं की अहमियत को क्या जाने..!" जाह्नवी अब भी चीखें जा रही थी, उसकी आंखों से आँसू बह निकले।
"नहीं जानी…! ऐसा नहीं है, पर सबको एक जैसा समझना कहाँ की होशियारी है?" निमय ने उसके आंसू पोछते हुए प्यार से पूछा।
"वाह! तो मोहतरमा ने दो दिन में ही अपना जादू चला दिया, बहुत सही भाई… तुझे अगर मुझे छोड़कर उसके पास जाने का हो तो जा। मगर जब उसकी मासूमियत के पीछे छिपे चेहरे को देख लेना, तो अपनी बहन के पास चली आना, उसके दिल में तेरे लिए हमेशा वो जगह रहेगी जो आज तक है।" जाह्नवी उसके हाथ को हटाने के साथ वहां से उठते हुए बोली।
"प्लीज्…!" निमय आज खुद को बेबस महसूस कर रहा था। मगर वह कुछ भी नहीं कर पा रहा था।
इससे पहले कोई कुछ और बोलता प्रोफेसर राव क्लास में आ गए, शायद किसी ने जाह्नवी के फरी से लड़ने की शिकायत प्रोफेसर से कर दी थी, जिस कारण वे थोड़े परेशान नजर आ रहे थे क्योंकि पूरी क्लास में से अगर जाह्नवी को लेकर शिकायत जाती तो सारी गलती उसके ही मत्थे थोप दी जाती इसलिए प्रोफेसर ने निमय, फरी और जाह्नवी तीनों को खड़ा करा दिया।
"तुम बताओ निमय क्या हुआ था?" प्रोफेसर राव ने निमय से पूछा।
"क...कुछ नहीं सर!" निमय ने हकलाते हुए जवाब दिया, उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या बोले।
"कुछ तो हुआ है मिस्टर निमय! आप बताइए मिस फरी आपको जाह्नवी ने क्या बोला?" प्रोफेसर राव ने फरी की ओर मुखातिब होते हुए पूछा।
"कुछ नहीं सर, छोटी सी बात हुई और कुछ नहीं!" फरी ने किसी तरह अपने अंदर भरे भावनाओं के तूफान को रोके मुस्कुराते हुए बोली।
"पक्का न!" प्रोफेसर ने स्पष्ट करने के लिए दुबारा पूछा।
"जी सर!" फरी ने बस इतना ही कहा।
"तुम लोग ऐसे ही किसी की शिकायत न किया करो, बाकी हम सब जानते हैं कि ये लड़की अपने भाई से लड़ती रहती है मगर हमें ये भी पता है कि ये किसी का दिल नहीं दुखा सकती!" प्रोफेसर राव बाकी सबकी ओर मुखातिब होते हुए बोले। "तुम सब अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो, हम अभी आते हैं!" कहते हुए वे बाहर निकल गए।
'मगर आज तो उसने किसी का दिल दुखाया है सर! कम से कम सोच समझकर बोलना सीख लो मिस जाह्नवी! उस लड़की को देखो इतना सब होने के बाद भी कितनी आसानी से कह दिया बस छोटी मोटी बात है, तुम्हें कोई इतना बोला होता तो निमय अब तक उनकी जान ले लिया होता..! अब भी कुछ तो सोच समझ लो, कहीं ऐसा न हो कि अफ़सोस करने तक का मौका न मिले!' विक्रम मन ही मन बोला, उसे जाह्नवी का फरी पर इस तरह से बेवजह चिल्लाना बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था। निमय अभी भी सोच में डूबा हुआ था, वह जितना सोच रहा था लगातार उतने ही दुविधा के गर्त में धँसता जा रहा था। फरी की आँखे रुंधकर लाल हो चुकी थी, वह खुद का ध्यान इन सबसे हटाने की कोशिश कर रही थी मगर उसके कानों में अब भी जाह्नवी के वही शब्द गूंज रहे थे जो बार बार उसके दिल को चीरकर जख्मी किये जा रहे थे, आज वह खुद को फिर से उतना ही बेबस और लाचार महसूस कर रही थी जितना वह अपनी माँ को खोने के बाद हो गयी थी।
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इंटरवल में…!
निमय और विक्रम ग्राउंड में बैठे हुए थे, आज विक्रम और निमय दोनों ही बिल्कुल शांत थे, निमय बस घास तोड़ते हुए कुछ सोचने में लगा हुआ था।
"क्या सोच रहा है?" काफी देर तक चुप रहने के बाद आखिरकार विक्रम ने पूछ ही लिया।
"कुछ नहीं!" निमय ने शांत स्वर में जवाब दिया। उसके लहजे में उदासी भरी हुई नजर आ रही थी।
"तो क्या फैसला लिया?" विक्रम ने तल्ख लहज़े में पूछा।
"किस बात का? कैसा फैसला?" निमय ने अनजान बनते हुए कहा।
"अनजान बनने की कोशिश मत करो निमय, तुम्हें सब पता है, तुम्हें बोलना चाहिए था!" विक्रम का लहजा सख्त हो गया।
"तो मैं क्या बोलता.. उन दोनों के बीच तो मैं पीस रहा न!" निमय ने सिर झुकाकर कहा।
"तो… क्या कुछ भी बोलने देगा तू जाह्नवी को?!" विक्रम आज जाह्नवी के इस हरकत से बेहद नाराज नजर आ रहा था।
"तुम्हें पता हैं…" निमय ने सिर झुकाए हुए जवाब दिया।
".बेशक मैं फरी से अब जान से ज्यादा मोहब्बत करने लगा, मैं तेरे सामने इस बात को कुबूल करता हूँ! वो मेरे लिए जान से ज्यादा इम्पोर्टेंस रखती है।" निमय ने शांत स्वर में कहा।
"तो? ये बात मैं पहले दिन से जानता हूँ..! जान से ज्यादा इम्पोर्टेंस का क्या..?" विक्रम ने तल्ख लहजें में पूछा।
"जान से ज्यादा, मगर मेरी बहन से नहीं..!" निमय ने उसी लहजें में जवाब दिया।
"तो क्या ये बात तू फरी को कभी नहीं बताएगा?" विक्रम ने निमय के कंधे पर हाथ रखते हुए पूछा।
"नहीं…!" निमय ने सीधा जवाब दिया।
"पर यार तू प्यार करता है उससे!" विक्रम ने निमय को समझाने की कोशिश की।
"देख मैं तेरे को मेरी बात इसलिए नहीं बताया ताकि तू मुझे ज्ञान दे, मैं किसको प्यार करता हूँ, कितना करता हूँ वो मेरा मैटर है!" अचानक निमय का लहजा सख्त हो गया।
"पर फरी?" विक्रम ने आँखों में कई सवाल लिए, निमय की ओर उम्मीद भरी नजरों से देखा।
"देख विक्रम! मैंने कहा न कि मुझे क्या करना है ये मेरा डिसीजन होगा, कोई भी मेरे और मेरी बहन के बीच आये, कोई उससे अजीज बनने की कोशिश करे, मुझे ये बिल्कुल मंजूर नहीं है। फिर चाहे वो भगवान ही क्यों न हो! ये तो फिर भी बस एक इंसान है, जिससे न जाने कैसे मैं बेइंतहा मोहब्बत कर बैठा।" निमय लगभग चींखते हुए बोला, विक्रम हैरानी भरी निगाहों से उसे देखता रह गया।
"तो ये तेरा अटल फैसला है? भले तेरी बहन ने उसका दिल दुखाया हो पर तू उसी के ओर से बोलेगा!" विक्रम ने सवालियां निगाहों से उसकी ओर ताकते हुए बोला।
"तुम्हें पता है विक्की! दुनिया में केवल एक इंसान है जिसके सही होने या गलत होने से मुझपर कोई फर्क नहीं पड़ता, मैं हमेशा उसके साथ ही रहूंगा। और ये फैसला फरी के अच्छे के लिए है क्योंकि मेरी बहन ये कभी स्वीकार नहीं करेगी कि कोई मेरे और उसके बीच आये।" निमय एक एक शब्द पर जोर देते हुए बोला, विक्रम बस उसकी ओर देखता रहा, उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या बोले, निमय की नम आँखे पलके तक भिगोये हुए थी। विक्रम की आँखों में आँसू उतर आये, उसे निमय की पीड़ा महसूस होने लगी थी, उसके दिल में निमय के लिए सम्मान और बढ़ गयी थी। उसने आज एक सच्चा प्रेमी और और बहन की खुशी के लिए अपनी खुशियां तक कुर्बान कर देने वाला भाई देखा था, उसने निमय को गले लगा लिया।
क्रमशः...
shweta soni
29-Jul-2022 11:38 PM
Nice 👍
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🤫
27-Feb-2022 01:48 PM
कहानी अच्छी जा रही थी, लेकिन कॉलेज में झगड़ा थोड़ा सा ज्यादा हो गया। और लास्ट में विक्रम की जगह निमय होगा।
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मनोज कुमार "MJ"
27-Feb-2022 09:02 PM
Thank uh so much ❤️
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अफसाना
20-Feb-2022 04:17 PM
कहानी बहुत बहुत बहुत अच्छी है।👍👍👍👍👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌
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मनोज कुमार "MJ"
27-Feb-2022 09:02 PM
Dhanyawad aapka 🥰
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